हंसा सुन्दर काया रो मत करजे अभिमान लिरिक्स

यह एक प्रशिद्ध राजस्थानी चेतावनी लोक भजन है जिसे स्वर दिया है मोइनुद्दीन मनचला जी ने और जिसका सन्देश है की हंसा (जीवात्मा को हंसा कहा गया है ) तुम अपने तन (शरीर) पर गर्व (घमंड) मत करो, यह क्षणिक है। बुढ़ापा आते देर नहीं लगती और एक रोज इसे छोड़ कर तुमको जाना है। इसलिए इस सुन्दर काया (तन, शरीर, देह) का तुम अभिमान मत करो। इस भजन का हिंदी अर्थ (राजस्थानी भजन हिंदी मीनिंग) निचे दिया गया है, आशा है की आपको पसंद आएगा।

Hindi Lyrics

हंसा सुन्दर काया रो,
मत करजे अभिमान,
आखिर एक दिन जाणों रै,
मत कीजै अभिमान,
आखिर एक दिन जाणो रे,
मालिक रे दरबार,
आख़िर एक दिन जाणो रै,
मालिक रे दरबार।

गरभवास मे दुख पायो,
जद हरि से करी पुकार,
पल भर बिसराऊँ नहीं,
कौल वचन करतार,
हंसा सुन्दर काया रो,
मत करजे अभिमान,
आखिर एक दिन जाणो रे,
मालिक रे दरबार,
आख़िर एक दिन जाणो रै,
मालिक रे दरबार।

आकर के संसार मे,
कबहुँ ना भजियो राम,
तीरथ वरत ना कीन्हो रे,
नहीं कीन्हों सुखरत काज,
हंसा सुन्दर काया रो,
मत करजे अभिमान,
आखिर एक दिन जाणो रे,
मालिक रे दरबार,
आख़िर एक दिन जाणो रै,
मालिक रे दरबार।

कुटुंब कबीलों देख नै,
गरब कीयो मन माय,
हंस अकेलो ज्यासी रै,
कोय नही संग में जाय,
हंसा सुन्दर काया रो,
मत करजे अभिमान,
आखिर एक दिन जाणो रे,
मालिक रे दरबार,
आख़िर एक दिन जाणो रै,
मालिक रे दरबार।

राम नाम री बाँध गाँठड़ी,
कर ले भव से पार,
(हो जा भव से पार)
वेद सुरतिया कहत है,
आसी थारे काम,
हंसा सुन्दर काया रो,
मत करजे अभिमान,
आखिर एक दिन जाणो रे,
साहब रे दरबार,
आख़िर एक दिन जाणो रै,
मालिक रे दरबार।

हंसा सुन्दर काया रो,
मत करजे अभिमान,
आखिर एक दिन जाणो रे,
दाता रे दरबार,
आख़िर एक दिन जाणो रै,
सायब रे दरबार।